Saturday, March 6, 2010

लम्हों को जिया करो

ढलती हुई शाम का मज़ा चक्रेश लिया करो
लम्बी बहुत है जिंदगी लम्हों को जिया करो

पीते नहीं हो तुम ये जानता हूँ मैं
दोस्तों की खातिर यूँही जाम उठा लिया करो

अफ़सोस रह जाए दिल को ये ठीक तो नहीं
साकी से दिल की बात खुल कर किया करो

साहिल तक आती लहेरों को बस रेत नसीब है
कुछ खोने की भूल कर बेफिक्र बहा* करो

वो देखो हंसने पे तुम्हारे बहार आ गयी
लोगों की फ़िज़ूल बातों से मायूस न हुआ करो

2 comments:

Fauziya Reyaz said...

good writing....keep it up

Unknown said...

its beautiful............

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