Saturday, March 20, 2010

मुद्दत हुई मयकदे गए

मुद्दत हुई मयकदे गए, नहीं है फुर्सत आज कल
मयनोशी का वो दौर था, नहीं है आदत आज कल

कुछ बात के जी नहीं लगता ऐ दिल तेरे शेहेर में
हर शख्स से जाने क्यूँ हमको है नफरत आज कल

दरवाजे घर के खोल कर, आये हैं हम चौक पर
जाओ सब कुछ लूट लो, भाति नहीं दौलत आज कल

कोई मिले तो दे चले हम सब कुछ अपना सौंप कर
हाथों में लेकर घुमते हैं अपनी वसीयत आज कल

क्या कहें 'चक्रेश' के जी लगता नहीं अब बज़्म में
हिज्र की रा-ना- ई-यों में दिखाती है जन्नत आज कल

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

VERY NICE,,,,,

chakresh singh said...

itani jalldi kisi post pe comment nahi aaya tha ab tak :) ...dhanyaavaad Suman ji , Sanjay ji

उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही

  उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं  रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा  ख़ुद के हा...