लम्हा लम्हा याद कर सुबो से शाम कर गए
लो आज फिर एक ग़ज़ल तेरे नाम कर गए
हुस्न देख लिया हमने परदे को खेंच कर
इस बेखुदी में जाने क्या क्या काम कर गए
खूब चला सिलसिला छुप छुप के मिलने का
चर्चा मुहब्बत का शेहेर में आम कर गए
अपनी कब थी परवाह, जिल्लत से कब था डर
लो साथ अपने तुझको भी बदनाम कर गए
जुदा हुआ तू मुझसे , चाँद में पा लिया तुझे
तुझसे जुदा तन्हा जीने का इत्तेजाम कर गए
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
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4 comments:
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
वाह
बहुत उम्दा गजल
बधाई
अपनी कब थी परवाह, जिल्लत से कब था डर
लो साथ अपने तुझको भी बदनाम कर गए
जुदा हुआ तू मुझसे , चाँद में पा लिया तुझे
तुझसे जुदा तन्हा जीने का इत्तेजाम कर गए
बढ़िया शेर
dhanyawaad aap sab ka
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