Wednesday, March 3, 2010

जीवन के रंग रूप


सुख दुःख के घेरे
जीवन के रंग रूप
माँ के आँचल की छाँव
कहीं चिलचिलाती धुप

चाहने वालों के मेले
गुमनामी का विराना
कोशों तक फाली चुप्पी
खुद से ही बतियाना
रुन्धता गला
यूंही ही आदतन मुस्काना
दुहराना बार बार गीता का
ढूढना ईश्वर स्वरुप

सुख दुःख के घेरे
जीवन के रंग रूप
माँ के आँचल की छाँव
कहीं चिलचिलाती धुप

अनुमान आज से ही
चित्त को चिता की ताप का
कर्म-तुला पर
लेखा जोखा पुण्य-पाप का
ये काव्य है परिणाम
मन से उठते भाप का
आगई आज पृष्ठ पर
हृदय की भावना अनूप


सुख दुःख के घेरे
जीवन के रंग रूप
माँ के आँचल की छाँव
कहीं चिलचिलाती धुप

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुख दुःख के घेरे
जीवन के रंग रूप
माँ के आँचल की छाँव
कहीं चिलचिलाती धुप

behtreen..........rachna

संजय भास्‍कर said...

कविता तो बहुत लाजवाब लगी भईया

अरुण मिश्र said...

जीवन यथार्त को
पहचानती,परखती
सुंदर रचना
बधाई

अरुण अवध said...

जीवन यथार्थ को
पहचानती,परखती
सुंदर रचना
बधाई

baba said...

great..one of the best expressions of life combined with indian thoughts

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